Guru Gyan Darshan
Category : Personal story
ये उन दिनों की बात है जब मैं गोरखपुर विश्विद्यालय से डी.पी.ए कर रही थी और मैं अपने माता-पिता के साथ किराये के मकान में रहती थी | हमारे घर की मकान मालकिन बड़ी सभ्य औऱ उदार चरित्र कि महिला थी लेकिन वह कैंसर जैसी बड़ी बीमारी से लड़ रही थी | एक दिन की बात है कि वह मेरे घर पर आयी और मुझे अपने साथ कैंसर हॉस्पिटल चलने के लिए कहा | फिर मैं अपनी माँ से पूछकर जाने के लिए तैयार हो गयी और कुछ समय बाद मैं हॉस्टपिटल पहुँच गयी | वहां मैंने अपनी ऑन्टी का चेक-अप कराया | उसके बाद हम घर ओर चल दिए | तभी ऑन्टी ने मुझसे कहा कि यहीं पास में गीता प्रेस वालो का प्रसिद्ध राधा कृष्णा मंदिर है | जिसमे भाई जी नामक गुरु के दर्शन कर लेते है | फिर मैं उनके साथ मंदिर कि ओर चल दी, वहाँ जाकर मैंने देखा कि वह गुरु गोरखपुर के प्रठिस्तित व्यक्तियों से घिरे हुए थे | हम दोनों उनके पीछे जाकर बैठ गए और उनकी बाते सुनते रहे | तभी उनसे कुछ लोगो ने कुछ प्रश्न पूछे जो प्रश्न मेरे लिए नए नहीं थे | जब भाई जी कुछ समय तक नहीं बोले तबमैंने उन प्रश्नों का बड़ी ही सरलता से जवाब दिया | उन जवाबो को सुनकर वह पीछे मुड़े औऱ बोले कि “क्या तुम समबृष्टि हो क्या तुम समदृष्टि हो ,तुम्हारे गुरु कौन है? औऱ कहाँ रहते है ?” फिर मैंने उन्हें बताया कि मेरे गुरु स्वामी असंग देव भईया जी है औऱ वह जलालाबाद जिला शाहजहांपुर में रहते है | फिर मैं वहाँ से चली आयी | कुछ दिनों बाद जब मैं भईया से मिली औऱ पूरी घटना बताई फिर उनसे पूछा कि मैं तो केवल आपके चरण कि धूल मात्र हूँ , जब मैंने गीता प्रेस के गुरु भाई जी के प्रश्नों का इतनी सरलाता से उत्तर दे सकती हूँ फिर आपको व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है | इस बात को सुनकर वह मुस्कुरा दिए वह पल मेरे लिए बेहद आनंदायक था |
इस तरह मेरे जीवन में अनेको घटनायें घटी जो मेरे संपूर्ण जीवन के लिए प्रेरणा का स्रोत है |